निठ्ठ्लापन जिंदगीका चुभ गया दिलमें
वीरानेमें फिर कभी बहार न आएगी मुड़कर शायद ....
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मेरी खामोशीको कमजोरी समजकर
हर कोई मेरा हौसला तोड़ता चला गया .....
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मंजिलोंको मेरी जरुरत नहीं है शायद
उसे मिल गए है चाहनेवाले बहुतसे अभी ......
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गर कोई मकसद न रहे जीनेका
तो ये जिंदगीका क्या करना ???
जिसने दी है ये अनमोल सौगात कहकर
उसने ही तोड़ दिया उसे जर्रे जर्रेमें कांचकी किरचोंमें ...
वीरानेमें फिर कभी बहार न आएगी मुड़कर शायद ....
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मेरी खामोशीको कमजोरी समजकर
हर कोई मेरा हौसला तोड़ता चला गया .....
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मंजिलोंको मेरी जरुरत नहीं है शायद
उसे मिल गए है चाहनेवाले बहुतसे अभी ......
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गर कोई मकसद न रहे जीनेका
तो ये जिंदगीका क्या करना ???
जिसने दी है ये अनमोल सौगात कहकर
उसने ही तोड़ दिया उसे जर्रे जर्रेमें कांचकी किरचोंमें ...
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