आज चुप चुपसी एक सुबह हुई ,
सूरज भी दबे पांव आया ,
रात हाथमे रेतकी तरह सरक गयी ,
और नींदने अपना दामन कुछ ज्यादा फैलाया .....
आँखे खुली तो उजालेका दुशाला ओढ़े
एक सुबह हंस रही थी ...
मुझे पूछ रही थी ...
क्यों आज कुछ खास सपना था ??
या फिर
सपनेमें मिल गया कोई अपना था ???
मैंने मुस्कुराकर बिस्तरका पहलु छोड़ा
और फिर आँखे नचाकर उसको बोला :
मेरे सपनोकी गलीसे गुजरकर
मैं अपने बचपनमें पहुँच गयी थी
और वही पुराने यारो दोस्तोंसे मुलाकात हो गयी थी ...
सर पर लग गयी चोट गुल्ली डंडा खेलते हुए ,
तो डॉक्टर साहबसे पट्टी करवाने गए थे
सब यार दोस्त मेरे इर्द गिर्द खड़े थे ...
डॉक्टरने जब सुई लगायी तो जोरसे मैं चिल्लाई .........
उई माँ ...........................
आँखे खुली तो वो सपना था खुबसूरत
जिसे मैं रातोंके नींदके दोशालेके हवाले छोड़ आई थी ...
सूरज भी दबे पांव आया ,
रात हाथमे रेतकी तरह सरक गयी ,
और नींदने अपना दामन कुछ ज्यादा फैलाया .....
आँखे खुली तो उजालेका दुशाला ओढ़े
एक सुबह हंस रही थी ...
मुझे पूछ रही थी ...
क्यों आज कुछ खास सपना था ??
या फिर
सपनेमें मिल गया कोई अपना था ???
मैंने मुस्कुराकर बिस्तरका पहलु छोड़ा
और फिर आँखे नचाकर उसको बोला :
मेरे सपनोकी गलीसे गुजरकर
मैं अपने बचपनमें पहुँच गयी थी
और वही पुराने यारो दोस्तोंसे मुलाकात हो गयी थी ...
सर पर लग गयी चोट गुल्ली डंडा खेलते हुए ,
तो डॉक्टर साहबसे पट्टी करवाने गए थे
सब यार दोस्त मेरे इर्द गिर्द खड़े थे ...
डॉक्टरने जब सुई लगायी तो जोरसे मैं चिल्लाई .........
उई माँ ...........................
आँखे खुली तो वो सपना था खुबसूरत
जिसे मैं रातोंके नींदके दोशालेके हवाले छोड़ आई थी ...
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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