रुक जाते है अल्फाज़ लब पर कदमके साथ ही ,
अनायास जब चलते चलते उनसे सामना हो जाता है ......
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चाहतसे दूर चले जाना भी लाज़मी है प्यारमे ,
दस्तूर है की जुदाईमें चाहतकी गहराई समज आती है ...
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उधार कभी अश्क भी नहीं बिकते दुकानोंमें
ये तो साएकी तरह पीछे चलते रहते ही इश्ककी राहोंमें ...
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गर मिलते रहे हर गलीमें आशिक मजनूका भेस बनाकर
लैला कभी दहलीजके बाहर न आएगी ,इश्कके लिबासमें .....
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हुस्न बेवफाईके इलज़ामसे बदनाम न होता कभी ,
सितमकी जंजीरोंसे उसके हौसलोंको झकड़ा न होता जमानेने .....
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बेहतरीन प्रस्तुती.....
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