एहसान बस इतना सा कर दो ,
आज फिर एक बार मुझे खुदके हवाले कर दो ....
मुझे घुटन हो रही है ,
इन जूठे रिश्तोके लिबासोमें ,
मुझे एक अनजान डगर पर जाने की मोहलत दे दो ....
कहोगे की किसने रोका है मुझे ???
बस एक वादे ने जो किया था मैंने कभी
की कभी साथ न छोड़ेंगे तुम्हारा ....
पर आज तेरे दर पर आकर देहलीजसे हम लौट गए ,
बहुत भीड़ है तुम्हारी ख़ुशीमें
तुम्हारे साथ कहकहे लगाने वालो की ,
यहाँ की तन्हाई से तो वो तन्हाई भली है ,
जो राह तकते मेरे घरकी खिड़की से
सारे लम्हे गुजरते थे तेरी यादों के .....
प्रीति जी,बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
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