आज अलमारी बोल पड़ी
उस पर रखी एक संदूकने पुकारा मुझे ...
मेरा एक अस्तित्व सालों के बाद
उस संदूकसे बाहर आने लगा ....
वो जेवर ,वो मूंदे कानोंके ,
वो पहेली कक्षाकी तस्वीर स्कुलकी ,
वो पहली डायरी ,
वो पहली डायरी ,वो पहली शायरी ,वो पहली कविता .....
वो कंगन ,वो कलम ,वो शंखकी माला ,
वो पत्थर ,गित्ते ...
वो आल्बम तस्वीरोंके जमघटसा ,
जहाँ पर हर पन्ना पल्टाते हुए
पीछेसे आगे तलक
मेरी उम्र हर लम्हा घटती जाती थी ...
जब वो आगे से पीछे जाते थे
हर लम्हा मेरी जिंदगीमें मुझे
बड़ा कर रहा था ....
पर मेरे आज तक न छू पाता था ....
छोटी फ्रोकसे साडी तक का सफ़र था वो ....
सबसे नीचे रखी हुई वो ग़ालिब की नज्मोंकी किताब
बड़ी ही नजाकतसे उठाई ....
एक सूखे हुआ गुलाब सरक आया ,
कुछ लिखा हुआ एक कागजका टुकड़ा सरक आया ,
हमारे इश्ककी पहली सालगिरहकी यादें समेटकर
सरक गए सूखे हुए गुलाबकी खुशबू
अभी तक वो सफे पर रुकी थी ...
पहले प्यार का एहसास बिखेरे हुए .....
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