20 अगस्त 2011

ये रास्ता ....



एक नयी राह


एक नयी सड़क ....


घने पेड़की छाँव तले दो पल रुकना मेरा ....


पेड़ के तनेसे टिक कर बैठी ,


रस्ते को निहारती रही ....


कहाँसे आया कहाँ जाएगा ....


मंजिल चाहे जुदा हो भले


पर मंजिल तक ये रास्ता ही ले जाएगा ....


बस तलाश एक हमसफ़र की .....


दो कदम साथ चलेंगे ...


थोडा रुकेंगे ...


थोडा संभलेंगे ....


बस एक रास्ता ..एक पेड़ और एक मैं ....


आज ये वक्त थोडा थम जाए ....

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  2. बहुत खूब ...बहुत दिनों बाद आपकी कोई रचना पढ़ी ..

    जवाब देंहटाएं
  3. निरंतर आगे बढ़ता हुआ सफर जो न कभी रुका है न रुकेगा बस चलता ही रहेगा |
    सुन्दर रचना |

    जवाब देंहटाएं

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