रोक लो बढ़ते कदमको
आगे ढलान है या फिसलन ???
ये बारिश का मौसम है और आगे मिटटीके ढेर
रोक लो बढ़ते कदमको ....
नंगे पांव ये छोड़ जायेंगे निशाँ गीली मिटटी बनकर ....
याद रह जायेंगे जब सूखेंगे ....
वो निशाँ तुम्हारी हयातकी आखरी निशानी है ,
संभालकर रख लेते है उसे आँखोंमें कैद करके ....
तुम्हारी यादों की वफ़ा पर हमें नाज़ है
तुम्हारी तरह हमें वो तनहा छोड़कर गयी नहीं ...
फक्र होता है अपने इश्क पर ....
रश्क होगा खुदा को भी की
हमें दिल देकर नवाजिश कर दी ...
जीने की इजाजत तो दी ...
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