मुझे ख़ामोशी जचती है ,
मुझे ख़ामोशी पचती है ,
क्योंकि वो हरदम मेरे साथ ही रहती है ,
उन अल्फाज़को क्या कहें ?
पल दो पल साथ रहकर फिर
हमें ख़ामोशीके हवाले कर जाए !!!!!!!!!!!
मुझे वो खुबसूरत भी लगती है ,
वो इज़हार कर रहे थे प्यारका ,
हौलेसे उठी हुई नज़रें जुबाँका काम कर गयी ....
हम खफा जो हो गए उनकी इस खुबसूरत खता पर ,
वो मोटी मोटी आँखोंमें लाल डोरे पिरोकर ,
हमारे अंदाज बयाँ कर गयी .......
उनकी मायूसीको बयाँ कर रहा था वो अश्क
खुली खिड़की पर पलकोंकी .....
उनसे मिलाकर नज़रें हमने भी
इश्ककी इनायत अदा कर दी .......
बस एक पर्दा रहा ख़ामोशी का ......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें