10 मई 2011

एक रात .....

ये गर्म धूप......
बदन झुलसाती हुई ....
जैसे भीतर उबल रहे ज्वालामुखीको ....
पानीमें बदलकर तेज धार बहाने वाली ......
हमें ना जाने क्यों नफ़रत है ये हवासे ????
कोयलको देखो !!!!

गर्मीकी ख़ामोशीको कैसे मीठी आवाज बींधती हुई ....
वो देखो पेड़की टहनीसे लटकी हुई अम्बिया !!!!!
यौवन पुरबहार खिल जाता है उस पर ...
उसकी खटाई पूरी मिठाश बनकर उभर आती है .......
वो चाँद कैसे हुस्नके रंग बिखेरता होगा आसमांकी चुनर पर ,
ये जलवे उन पुरवाइयोंसे सनी रातोमें ही जाना !!!!!
वो बातें करते सितारे महफ़िल सजाते है शबभर ,
वो रात रात भर जागकर काटते प्रेमियोंकी
गुफ्तगूको कोई शायरकी कलममें जाकर सुनाते है .........
एक समाधी लिए हुए वो गर्मीकी रात का खामोश हुस्न ,
जैसे अँधेरी चुनरमें लिपटी हुई एक नयी कहानी .....
सुनोगे ????
बस एक रात उस छत पर जाकर देखो ,

वो चेहरा होगा जिसका दीदार करने तरस गये हो ,
चाँदके आयनेमें उभर कर आएगा .....

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