एक मैं ,
एक और मैं ,
खुद के अन्दर खुद को पाया ,
लगता था उससे ही मुझे जीना आया ....
बिलकुल अलग थी मैं ,
दुनियादारीसे महरूम थी मैं ,
अकेली एक खिड़की के बहार क्षितिजको तकती हुई ,
बाहर आसमां खड़ा था बाहें फैलाकर ,
मुझमे ना कोई रंजोगम था ना खुशियोंकी सौगात ,
बस हर पल में जिन्दा थी ,हर पर को जी भर के जीते हुए ,
हर रिश्ते नाते से कोसो दूर ....
खुद के साथ ,खुद के पास ,
खुद की दोस्त ,और कभी खुद की दुश्मन भी ....
खुद से बाते थी ,ये महज एक मुलाकात थी या उसका दौर ,
ये जानू ना मैं ,
पर हां लौटने से पहले एक वादा कर लिया ,
हम साथ साथ ही रहेंगे यूँही ...हमेशा ...दीखते नहीं पर छुपकर ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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