बस एक बार फिर चाँद .....
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एक सफा है सफ़ेद एक एक टुकड़ा जुड़कर बनता है ,
एक गोल माँ के हाथ की रोटी सा ,
थोड़ीसी कथ्थई लकीरोंसे सजा संवारा हुआ ....
जब पूरा गोल बनता है ,
अपनी ठंडी छुरीसे ये प्रेमियोंके दिलों पर छुरी चलाता है ,
उन बारीक़ एहसासोंकी गुथ्थियाँ उलज़ाता है ,
जगती आँखोंके लाल लकीरोंमें उभरती है जो
उसकी धुंधली तस्वीरसे गुफ्तगू करते एक और रात गुजर गयी ,
चुप रहने की कसम थी पर छलकती चांदनी
कुछ कानोंमें भर गयी ....
धीरे धीरे चाँद का गोल टुकड़ा धीरे धीरे बहने लगा ,
थोडा थोडा करके घटने लगा ,
अब वो तनहाई की रात आ गयी ,
फिर उसके इंतज़ार की बात आ गयी ....
ठहरी हूँ यहीं पर एकटक तकते आसमां को रात में ,
उसने फिर आने का वादा जो किया है ...
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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