5 फ़रवरी 2011

एक बुलबुला ...

बुलबुला बहता गया नदीके पल्लू पर ,
कहते है कौन कैद कर पाया हवाओंको ,
बुलबुला हंस पड़ा देखो हवाओंको मैंने कैद कर लिया ,
सूरजकी एक किरन उसे नहला गया ,
सात रंगका जामा पहना गयी ...
बुलबुलेको ना थी कोई ख्वाहिश कनारेकी ,
ना उसे गहराईको नापनेकी चाहत थी ,
बहती हवाको अपनी बाँहोंमें भर वह तो चलता चला गया ,
लहरोंसे खेलता हुआ ,खिलखिलाकर हँसता हुआ ....
थक गया था शायद दूर तक आते आते ,
थोड़ी देर सुस्ताया फिर दुसरे बिंदुको हवा देकर लहर पर छोड़ दिया ,
देखो खामोशसा वह बैठा जलधारामें फिर खुद को मिलाता हुआ ....

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