फिजा को देखो जरा खिड़की से पर्दा हटाकर
शीशे के उस पार एक चुप्पी सन्नाटा ओढ़कर खड़ी है ,
धुआं धुआं एक सुबह बस ख़ामोशीसे ,
टटोलकर सूरजको उठाकर चली गयी ......
बस उस सन्नाटेकी चुप्पीका पयमाना छोड़ गयी है ,
चलो आज की कुर्बत इसी चुप्पीके नाम किये जाते है ,,
हम भी बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाते है ...
उस ख़ामोशीके बोलने के इंतज़ारमें .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
27 जनवरी 2011
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