फिजा को देखो जरा खिड़की से पर्दा हटाकर
शीशे के उस पार एक चुप्पी सन्नाटा ओढ़कर खड़ी है ,
धुआं धुआं एक सुबह बस ख़ामोशीसे ,
टटोलकर सूरजको उठाकर चली गयी ......
बस उस सन्नाटेकी चुप्पीका पयमाना छोड़ गयी है ,
चलो आज की कुर्बत इसी चुप्पीके नाम किये जाते है ,,
हम भी बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाते है ...
उस ख़ामोशीके बोलने के इंतज़ारमें .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
27 जनवरी 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें