18 जनवरी 2011

दस्तूर ...

कभी शाम ढले तुम्हारी सदा मुझे आज भी पुकारती है ,
हम नहीं साथ चल सके तो क्या हुआ ???
हमारी यादें तो दुनिया के दस्तूर तोड़ कर आज भी
हाथ में हाथ लेकर साथ साथ है .........
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तुम्हारे दामन की खुशियों को भरनेका वादा किया ,
तो अब ये आँखों के अश्क मुझे फिर से दे दो ....
तुम्हारे रेशमी गालोको खारे पानी से मत धो ...
अभी उसे सीपी में सजा मोती बना दूंगा मैं ....

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