झुकती हुई उठती हुई पलकें ,
कांपते हुए होठ ,
बस यहीं पर खो गया मेरा बटुआ ,
जो अल्फाजोंसे मालामाल था ............
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ना कर दिल ए नादाँ कुछ जुनूं बेवजह
ये तो कांच से नाजुक इश्क दा मामला है .....
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गुजरते हुए कारवांके गुब्बारमें
मेरी मीठी यादोंकी तस्वीरें उठती नजर आने लगी ......
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कुछ सहमा हुआ कुछ सिमटा हुआ
कुछ शरमाया सा कुछ गरमाया सा
आँखोंमें अश्क बनकर पिघला सा
पलकों पर इंतज़ार बनकर जमा सा
देखो अंगड़ाई लेकर फिर जागा है
उम्र कहाँ देख रहे हो इसकी
बस ये उम्र से परे सदा से जवान सा है
इश्क है ...ये इश्क है ...ये इबादत का रुतबा लिए इश्क ही है ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
7 जनवरी 2011
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