23 नवंबर 2010

सुन ज़रा

एक बूंद के पीछे छुपा हुआ बादल
बादल के पीछे छुपा एक आसमां
आसमांमें छुपा हुआ रौशनी के पीछे एक चाँद ...
और चाँदमें नज़र आती है हमें तुम्हारी सूरत .....
सपने बनकर सिमटती हुई आँखोंमें रातको
दिन की धुप में ओज़ल हो जाती है .....
अय मेरी सुबह तु आकर क्यों ठहर नहीं जाती है ....
पास बैठेंगे ,गुफ्तगू करेंगे ...
भाप उठते चायके कपकी धुंधमें तुम्हारे चेहरे की किताबके
ये मासूम अफसाने पढेंगे ....

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