22 नवंबर 2010

फिर एक सुबह सुनहरी सी ...

कभी कभी ये दिल कुछ अजीबसे पेश आता है खुद के साथ ही ....वैसे तो लगता है सबकुछ ठीक ठाक है फिर भी कुछ ठीक नहीं होता है ....मेरे लिए मेरे दिन की शुरुआत बहुत मायने रखती है ....कुछ खबरें पढ़कर चलनेका ...वो भी हो सके तो बिलकुल अकेले ही ...थोड़े दिन पहले मेरा एक छोटा सा दोस्त राहील जो सिर्फ सात साल का है वो अपनी मा के साथ लगभग साथ ही निकलता था ...उसके साथ मस्ती करनी मुझे हमेशा पसंद है पर सुबह में नहीं ...मुझे उस वक्त बातें करना भी नहीं अच्छा लगता ...पर उसकी मा जो मेरी सबसे अच्छी सहेली भी है उसके साथ बात भी बहुत कम करती थी ...ऐसा क्यों होता है पता नहीं चलता........
सुबह मैं खुद के साथ होती हूँ ...बहुत कुछ देखती हूँ ..बहुत कुछ नए ख्याल पनपनेका मौसम मेरे जहनका मेहमान होता है ..तब किसीका मिलना एक खललसा लगता है ....कुछ चेहरे अब सर्दी के चलते नए जुड़े है तो कुछ पुराने चेहरे नज़र नहीं आते ...मन ये देखता है ...जब बहुत दिन के बाद कोई पुराना चेहरा लौटा है तो एक हलकी सी हँसी अकेले में आकर चली जाती है ....
रोज एक चाय की लारी के पास एक मा अपने दो बच्चे एक लड़का जो छोटा है और एक लड़की जो बड़ी है छोड़ने आती है ...स्कुल बस आती है दोनों बैठकर जाते है पर मा खड़ी रहती है .....जब बस टर्न होकर सामने वाली सड़क से गुजरती है तब खिड़कीमें बैठा बेटा मा को टा टा करता है तब मा वापस जाती है ......
ये एक छोटी सी बात दीवाली के वेकेशन के बाद आज स्कुल खुले तब दोबारा हुई तो एक बड़ी सी मुस्कान अचानक चेहरे पर आ गयी .....
क्या आप ऐसे पल गुजारते है कभी ....शायद येही वजह है की मैं कभी कोई डिप्रेशन नहीं पालती हूँ ...बस ये कुछ लम्हे मुझे सब कुछ आयने की तरह समजा कर चले जाते है ....फिर एक नए दिन के लिए तैयार कर देते है ....

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