18 नवंबर 2010

चलो चाँदसे बात करें

आज सहरमें पढ़ी अख़बारके सफे पर कुछ लहराती महकती पंक्तियाँ गुलजारजीकी ,
ये बावरा मन ढूंढ रहा कुछ अल्फाज़ भी छुपे नज़र आ रहे थे चिलमनमें
कुछ पगलाई सी कोशिश कर ली हमने अनजानेमें ही .....
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़सानेमें
एक पुराना ख़त खुला अनजानेमें
शाम के साये बालिश्तोसे नापे है
चाँदने कितनी देर लगा दी आने में ......
=गुलज़ार

कुछ कोशिश नाकाम सी की यूँ हमने ....
अफसानोमें बीते कल की खुशबूएं मिली
हर सफा महकसे सराबोर था ......
पिला सा कागज़ था कुछ दरारोंसे सजा हुआ
पुराने ख़तके खंडहरमें खड़ा वो इश्कका अफसाना फिर भी ताज़ा था .....
ढलते सूरजने मेरी हयातके काले सायेके कद को लम्बा कर दिया ....
फिर भी ढलती शामके अंधियारेमें चाँदने मेरे साये को छुपा लिया .....
कहते है पल एक इंतज़ारका एक सदी सा लगता है
तुमसे वादा किया था मिलनेका आज चाँद रात को
सूरज आज रुक रुक कर चलता रहा
और चाँद भी नंगे पांव चुपकेसे छुपता हुआ आ रहा था
इस बेमुरव्वत ज़मानेकी नजरसे ....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...