15 नवंबर 2010

मेरा पता ....

एक दिन का इंतज़ार था मुझे
जब ख़ुशी मेरे द्वार पर मुझसे मेरा पता मांगे ....
बस कल उसने दस्तक दी
और मैं उसके साथ चल पड़ी .......
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नज़र तो झुकी रह जाती है
इश्क फिर भी बोलता रह जाता है ....
कभी इश्क खामोश रहकर भी
सफे पर दास्ताने लिख जाता है ..........

2 टिप्‍पणियां:

  1. वहुत खूब !
    इश्क के सम्बन्ध में वहुत सही कहा है आपने क्योंकि इश्क बिना कहे ही सब कह देता है
    प्रेम के लिए शब्दों की क्या जरुरत है .

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विचार-परिवार

    जवाब देंहटाएं

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