उनसे मिलनेको दिल कर रहा बड़ा
कितने अरसेसे उन्हें मिले नहीं
पता नहीं मेरे पास उनका
कोई उनके शहरका नाम नहीं
यादोंकी बस्तीमें आशियाना था उनका ,
एक बरगदके पेड़ के नीचेकी चौपाल ,
शाख पर बैठे घरौंदेमें पंछी
हमारे मिलनके है साक्षी
हमारे दिलकी बातें उन्हें भी समजमें आती
एक दिन ....
एक दिन .....
उन्ही पंछीके घोंसलेसे बड़े हुए बच्चेकी तरह
हम उड़ गए दूर ....
अपने अपने आकाशकी तलाशमें दूर दूर ...
आकाश के एक सिरे को दुसरे छोर की तलाश अब
चलो एक बार उस चौपालसे जाकर पूछ लूँ
क्या वो आये थे ,क्या किसी टहनी पर पता छोड़ गए थे ......???
मैं उस छोर पर था वो इस छोर पर बरगद की छाँवमें
टहनी पर पता ढूंढते ढूंढते एक दूजे से टकरा गए .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
एक आस था ,विश्वास था
जवाब देंहटाएंअब ठूंठ रह गया हसरतों का
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.