20 सितंबर 2010

एक तस्वीर बोल पड़ी ....


हम दूर है
हम फिर भी पास है
हमें डर कैसा ?
जब हाथोंमें तेरा हाथ है
जिंदगी ऐसी ही है ना ???
हर वक्त एक संतुलन !!!!
कहाँ खत्म हो सिरा इसका
कोई पता नहीं ....
फिर भी हमें कोई गिला नहीं ......
तेरा हाथ तेरा साथ
तु जमीं तु आसमां !!!!
चलो इस तनहाई को यादगार बना दे ....
दूर तलक हम आसमां का सिरा ढूंढ कर लाये ....

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