नाराज़ हूँ पूरी दुनिया से आज ...
फिर भी ....
सूरज ने रोशनी दी ,हवाकी लहरोंने ठंडक दी ,
फूलोंने खुशबू दी ,पानी ने प्यास बुझा दी ....
रोटीने मिटाई भूख भी और बोस से तारीफ भी पायी ,
फिर भी क्यों नाराज़ मैं दुनिया से इस कदर ???
क्योंकि कैद मैं दुनियामें कांच की दीवारोंमें ...
उजाले वहां बिजली के दीयोंसे है ,
हवाकी ठंडक भी ए सी से आती है ,
खुशबू परफ्यूमके बोतलोंमें बंद होकर सताती है ,
पानी फ्रीज़ से उधार की ठंडक ले आता है ,
रोटी पेक लंच के लिबास में सज कर आती है
बोसकी तारीफमें
उसके प्रोमोशनका स्वार्थ मिलावट बनकर उभर आता है ...
ये बात आपने भी महसूस की हो इस कांचकी दीवारोंके पार
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