धरती के जर्रे तेज हवाओंके पंख पर होकर सवार
मेरे घरौंदे में मेहमान बन आ गए आज सुबह
शैतान बच्चोंसे हर कौने में फ़ैल गए
मैं उनसे बुहारते हुए सावन का संदेसा सुन रही थी ....
उनकी साँसोसे मेघ मल्हारकी बांसुरी सुन रही थी ....
तब कुछ नटखट बुन्दोने कारी बदरीसे निकल कर
मेरी टीनकी छत पर तबलोसी थाप दे दी ....
कृष्णप्रेम में दीवानीसी गोपी बन
मैं बरबस छत पर उस बूंदों से खेलने चली गयी ...
पर बदमास वो बुँदे फिर बदरी में छिप गयी .....
देखा जब पलट कर मैंने
मेरी गीली छत पर आज धरती और गगनके निशाँ बन गए थे
धुल ,पानी की बुँदे पर मेरे कदमों के निशाँ बन गए थे ....
कैसा सुरीला मिलन !!!!
धरती के जर्रे ,पानी की टिप टिप पर मेरे कदमों की
तस्वीर मेरी छत पर बन गयी .....
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