मुझे पानीकी बूंदों प्यास नहीं
इस सहराको किसी जिंदगीकी खुदमें तलाश भी नहीं
वजूद हूँ कण कणमें बिखरकर फैला हूँ मीलों तक
फिर भी इस धरतीकी हथेलीमें सिमटा हुआ
मैं रेगिस्तान ...ये रेगिस्तान ....
और मुझे ऑससी पानीकी उड़ने वाली बूंदों की प्यास भी नहीं ....
मीलों तक फैला हुआ सन्नाटा है
दिनभर सूरजकी तपिशको खुद पर सजाकर
मरीचिकाकी लहरों पर बहता हुआ फकीर सा ....
रात मुझे ठंडी ठंडी हवाकी लहरों को
मा के पल्लू की तरह ओढ़ाकर मुझे
सितारों की शाल ख़ामोशीसे लोरियां सुलाती है ....
मेरी आँधियोंमें बहता संगीत सुन ...
रेतकी उड़ती चादर से अपने हुस्न को सजाकर देख....
हरियाली कभी एक बार इस तरफ नजर घुमाकर देख...
अपनी कोमल हथेलीके स्पर्शसे मेरी बालू को सहला कर देख...
प्यार की बुँदे मिलेगी मुझ में भी
मैं हूँ रेगिस्तान .....................
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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विशिष्ट पोस्ट
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आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
bahut hi gahan abhivyakti.
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