एक अँधेरी रातके गहरे काले दामनको
चीर देती है एक किरण ये छोटे से चराग दी ....
अय चिराग बता दे खुदाने क्या की है तेरी उम्र दराज़ ???
चराग बोला हौले से :
कहाँ हमारी उम्र शुरू हुई है ?
पूछो जरा उस चिनगारीकी आतिशसे ...
कहाँ हुआ था इब्तदा इस सफ़र का ?
पूछो जरा उस बातीसे .....
इन्तेहाँकी घडी का इंतज़ार मुझे भी है ,
मेरा पूरा बदल झुलस जाता है जलकर ...
या तो वो एक तेज हवा का झोंका होगा ....
या इस तेल का आखरी जर्रा भी
जब मुझ पर अपना वजूद लूटा चूका होगा ........
बढिया रचना है।+बधाई।
जवाब देंहटाएंSAHI HE
जवाब देंहटाएंNICE
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
SAHI HE
जवाब देंहटाएंNICE
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