जिंदगी : जियो हर पल

जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....

4 अप्रैल 2010

शायद मैं ही .....

आज आ ही गए हो तो बस अब क्या गिला जिंदगीसे रहा ?

पर मेरा मन नहीं माना उसकी नम और सूझी हुई आँख ...

दास्ताँ कुछ और ही थी ....

तकियेका गिला पन अश्ककी खाराशका स्वाद लिए था ....

सलवटें चादरमें जागी रातोंमें करवटों का हिसाब दे रही थी ....

ये बिखरे हुए कागज़के टुकड़े जब संजोये हमने

सारा हाले दिल बयां था फुरकत के पलोंका ..........

एक खता कर दी हमने की

आनेमें कुछ देर ही कर दी ....

वर्ना ये गुजरे पलोंमें वो प्यार के बरसातकी शबनम

हमको भिगो देती बेखुदी लिए ...

वो पल सारे मेरी जिंदगीके घाटेके वही खाते में लिखे गए ....

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2 टिप्पणियाँ:

Blogger संजय भास्‍कर ने कहा…

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

4 अप्रैल 2010 को 9:42 am बजे  
Blogger Dr. C S Changeriya ने कहा…

हमको भिगो देती बेखुदी लिए ...

वो पल सारे मेरी जिंदगीके घाटेके वही खाते में लिखे गए ....

achi kavita he

man bh gai
http://kavyawani.blogspot.com/


shekhar kumawat

4 अप्रैल 2010 को 2:23 pm बजे  

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