आज आ ही गए हो तो बस अब क्या गिला जिंदगीसे रहा ?
पर मेरा मन नहीं माना उसकी नम और सूझी हुई आँख ...
दास्ताँ कुछ और ही थी ....
तकियेका गिला पन अश्ककी खाराशका स्वाद लिए था ....
सलवटें चादरमें जागी रातोंमें करवटों का हिसाब दे रही थी ....
ये बिखरे हुए कागज़के टुकड़े जब संजोये हमने
सारा हाले दिल बयां था फुरकत के पलोंका ..........
एक खता कर दी हमने की
आनेमें कुछ देर ही कर दी ....
वर्ना ये गुजरे पलोंमें वो प्यार के बरसातकी शबनम
हमको भिगो देती बेखुदी लिए ...
वो पल सारे मेरी जिंदगीके घाटेके वही खाते में लिखे गए ....
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
जवाब देंहटाएंहमको भिगो देती बेखुदी लिए ...
जवाब देंहटाएंवो पल सारे मेरी जिंदगीके घाटेके वही खाते में लिखे गए ....
achi kavita he
man bh gai
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shekhar kumawat