3 अप्रैल 2010

एक कसक ...

कांच का पयमाना ये भी खाली था ,

पर तुम्हारी नज़रसे छलक गया ...

पीते रहे हम ,जीते रहे हम ,बस पीते ही गए ,

ना मय ख़त्म हो रही थी और ना ही जाम थक रहा था ...

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सितारों के आगोश में लिपट कर

औससे भीगी चादरों पर

सपनोंको पीने का मौसम है ये

बस एक ही डर है की कहीं प्यार ना हो जाए !!!!!!!!!!!

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नश्तर चुभोना हमारे दिल पर बेरहमीसे

एक हलकी सी मुस्कान छोड़ जाता है होठों पर

इस ख्यालसे भी की करीब होते हो आप हमारे

एक पल के लिए पर खुद के वजूदको हम आपसे जोड़ पाते है ...

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