10 मार्च 2010

फिर तेरी तलब ....

घुट घुट कर यू हम जीते हैं
अश्कों को अपने पीते है
तलब तेरी दिल में लिये
क्या जाने कब तुझे रहम आ जाये
हमें जीने की वजह मिल जाये !!!!
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किरकिरीसी हाथोंकी लकीरोंको तकते हुए
नज़रसे भर दी हमने उन खाली सतह्को
मेरी तक़दीरको जो मुकम्मल अंजाम दे गया ,
खो गया वो शख्स फिर किस गुबारमें ???
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मुखातिब हुए है तेरी महफ़िलमें फिर आज ....
तेरे रूहानी नूरसे रोशन कर दे जहाँ मेरा फिर आज ....

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