बहुत बोल चुके अब एक चुप्पीसे वफाएं करनी है ,
उदासीके पल जी लिए ग़मोंके चादरमें लिपटे ,
अब खुशियोंसे यारी करनी है ,
कहते है छुपी है है वह दो पलोंके बीच पूल पर ...
क्या करें ? बन्दरकी तरह कई पलों पर छलांग लगाकर
कूदने फांदने की आदतसी हो चली है ,
जल्दी पहुंचना है मंजिल पर हमें
जिसके पतेकी चिठ्ठी तो हमसे गूम हुई है ....
चलो अब ख़ामोशीसे दोस्ती कर ली
नज़रें कुछ और चौकन्नी कर ली ....
चलती है जहाँ भेडचालमें एक भीड़
हमने बस पगडंडियोंसे यारी कर ली ....
रास्तेंमें खुशियाँ मिलती रही ....!!!!!!!!!!!!!
कभी कोयल की कूक बनकर ,कभी रेंगते सांप सी ,
कभी हाथी की दूम सी , कभी शेरकी दहाड़ सी ...
चलो हम अब हाथ में हाथ लेकर एक सैर को चलें .......
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