19 जनवरी 2010

बिना कोई मिलावट ....

फूलोंसे खेलते हुए कुछ अनमना हुआ है मन ,

चलो इन काँटोंको चुनकर हथेली सजा लेते है ,

खूंकी बूंद भी चमक जाए उस पर तो

हाथों पर कुछ लालिमा आ जाएगी .....

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तेरी मांग सितारोंसे भरने का वादा ना कर पाउँगा ,

जमीं का एक अदनासा इंसान हूँ ,

तुमसे बस प्यार कर पाऊंगा ,

बिना कोई मिलावट किये ....

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तुम्हें यकीं ना होगा मेरी मोहब्बत पर

कुछ गिला नहीं ,

हर दिलकी किस्मत

मिलनेकी रेखा हाथ में लिए नहीं आती ये हम जानते है ......

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक भंवरे को
    कैक्टस पर मंडराते
    देखा ..........
    यकीं हो गया
    काँटों में भी रस है
    कांटे भी हथेली पर सजाये जा सकते है....
    बहूत खूब .....

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  2. दिलचस्प, भाषिक बेफिक्री, अनुभवों की सांद्रता।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी रचनाये. बधाई .

    जवाब देंहटाएं

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