शब्द आज लुका छिपी खेल रहे है ,
कलमकी नोक पर नजर आते है
और उठाते ही कलम वापस कहीं छुप जाते है ....
ये नटखट हवाएं भी वो कोरा कागज़ उड़ाकर ले जाती है ,
पता नहीं ये पुरवैया भी अपने संग उसे क्यों उडाती है ,
लिखी होती है उस पर भी कुछ अफ़सानेसी दास्ताने
रुक जाती तो पढ़ लेते उसे
और हमें भी अपने गुमशुदा शब्दों के पते ठिकाने मिल जाते ......
bahut khoob hai shabdon ki lukachhipi.
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