12 जनवरी 2010

लुकाछिपी .......

शब्द आज लुका छिपी खेल रहे है ,

कलमकी नोक पर नजर आते है

और उठाते ही कलम वापस कहीं छुप जाते है ....

ये नटखट हवाएं भी वो कोरा कागज़ उड़ाकर ले जाती है ,

पता नहीं ये पुरवैया भी अपने संग उसे क्यों उडाती है ,

लिखी होती है उस पर भी कुछ अफ़सानेसी दास्ताने

रुक जाती तो पढ़ लेते उसे

और हमें भी अपने गुमशुदा शब्दों के पते ठिकाने मिल जाते ......

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