बहुत गहराई है तुम्हारी हर बातमें ,
तुम्हारी आंखोंके नशेमें डूब जाता हूँ ,
तैरकर पार नहीं आना मुझे ,
इसीलिए हर बात अनसुनी किए जाता हूँ ....
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कुछ कहने के लिए नहीं बचा अब की ,
बस हम खामोशसे लौट आए ,
दोबारा मिलने पर बातें ख़त्म न हो पाई ,
हिजरमें पुरी रात जो बितायी थी तेरे खयालमें ......
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बेवफा कहकर ठुकरा दिया था जिन्हें ,
आज उनके दिल को चीरकर देखा तो मेरा नाम ही था .....
अफ़सोस उनको गंवाने का नहीं हुआ
अब जाकर प्यार क्या है समज आया ....
सचमुच लाजवाब।
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मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।