20 दिसंबर 2009

बढे चलो ....


किसीके इंतज़ार में थमे थे कदम उस मोड़ पर अब तक ,

वो गया था कहीं दूर पर सदायें उसकी जैसे आ रही थी ....

लगता था जैसे अभी भी मुझे बुला रही थी ,

पर मेरी आवाज़ शायद मेरे हलकमें ही डूब जा रही थी ......

मेरी जिंदगी क्यों रुक जाए इस मुकाम पर ये सवाल

मैंने ख़ुद ही ख़ुद से जब पूछ डाला :

तो एक हैरतअंगेज सा जवाब पाया मैंने ....

गलती तो जनाब आप ही कर गए हो ,

चलने वाले तो चले गए अपनी मंजिल की तलाश में ,

और आप ही दीवानावार बने यहीं पर क्यो रुके रहे ?

तुम्हारी भी तलाश है किसी मंज़र पर किसी मोड़ पर खड़ी मंजिल को भी ,

जब तक नहीं चलोगे दीवाने कैसे पाओगे उसे कभी ?

ये भी कहीं कभी हो जाए जिसकी तलाशमें रुके हो यहाँ

उस मोड़ पर वो भी तुम्हारे इंतज़ारमें खड़ा मिल जाए !!!!!!!!!!!!!!!!!

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