20 नवंबर 2009

दूर कहीं दूर

कल उनसे मिलना हुआ ,

जैसे फिजामें अचानक

बहारका आना हुआ ,

बस छोड़ दो हमें अकेले यूँ ही .....

एक सपनेसे हथेली पर

उनके मेहंदी रचा दी ,

उनके नाजुक स्पर्शसे

हमारे हाथमें बिजलीसी कौंध गई ....

समां बंध गया ,

वक्त रुक गया ,

और हम कहीं बहते चले गए ...

दूर............... कहीं दूर ...

4 टिप्‍पणियां:

  1. उनके नाजुक स्पर्शसे

    हमारे हाथमें बिजलीसी कौंध गई ....

    समां बंध गया ,

    वक्त रुक गया
    waah ye ehsaason ka bhav behad sunder hai.

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद रोचक अभिव्यक्ति, अच्छी रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. सहेज कर रखी जाने वाली अनुभूति

    जवाब देंहटाएं

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