18 नवंबर 2009

मेरी अटारी पर ...

ख्वाबगाह पर एक अटारी है ,

वहां एक शाख आई अरमानों की ,

ख्वाहिशोंके फूल भी खिलने को थे ,

माँने आवाज़ देकर जगा दिया

चलो बेटे सुबह हो गई !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

==============================

कई सितमसे गुजर चुके ,

रहमोकरमकी ख्वाहिश न थी ,

हर ज़ख्म लगा था एक कुमुदसा ,

क्योंकि ये तो प्यार की कशिश थी .....

===============================

एक पल रूककर हाथमें हाथ ले लिया ,

खामोश हमारी नज़रोंने इजहारे मोहब्बत भी कर लिया ....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...