कुछ गुजरे हुए पल समेटकर रख लूँ ,
कोई सरकती रेत के कण को मुठ्ठीमें जकडकर रख लूँ ,
मेरे वो अनमोल पलों को कैद कर लूँ अपने जहनमें ऐसे ,
मुझसे कहीं न बिछड़ जाए कहीं .....
तेरी यादोंसे तो सजे थे जो दिन गुजारे थे हमने तुम बिन ,
आज वो यादें मुझसे बिछड़ ना जाए ये डर लगने लगा है ....
कहीं कोई नया मोड़ आ रहा है जिंदगीका इस राह से परे ,
अनजानी राह पर तुम बिन चलने को डर लगता है .....
फ़िर सोचते है ये तो कोई नया सिलसिला नहीं ,
ये पहली बार नहीं ये आखरी बार भी नहीं .....
बस कोई शख्सियत मेरे वजूद की आदत न बन जाए
ये ही मेरी असमंजस का एक हल लगता है ....
यहां अभिव्यक्ति की स्पषटता प्रमुख है।
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