12 अक्टूबर 2009

अनछुए खयालात ....

जश्न बहारोंका

फिजा आई मेहमान बन .....

दो पल रुकी ,

तोहफा दिया मैंने एक हरे पत्ते का .....

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शोर भरे गलियारेमें

खामोशी चलती है अजनबी बनकर ......

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तुम तक पहुँचनेकी चाहत

जकडे कदम जंजीरसे फ़िर भी .....

3 टिप्‍पणियां:

  1. शोर भरे गलियारेमें

    खामोशी चलती है अजनबी बनकर
    waah kya baat hai,bahut khub

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  2. शोर भरे गलियारेमें

    खामोशी चलती है अजनबी बनकर ......

    bahut badhiya prastuti......gahan anubhuti

    जवाब देंहटाएं

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