खाली कमरेकी दीवार पर लगी है
हंसती हुई गांधीजी की तस्वीर ....
सारे खिड़की दरवाजे और बिजलीकी रोशनी बंद करके
आज एक सच गांधीजीके सन्मुख बोलना है ........
मुझे हर वो जूठ का पता है
जो मैंने जान बुझ कर बोले है ...
मैं सिर्फ़ अपने बारेमें ही सोचता हूँ
चाहे मेरे कामसे औरोंको परेशानी से गुजरना पड़े ....
मुझे अपने वजूद को टिकाना है किसी भी हाल में
चाहे इसके लिए कितनों की जान लेनी पड़े ...
मुझे सिर्फ़ अपना पेट भरना है
चाहे इसके लिए कितनों की रोटी छीन लेनी पड़े .....
मेरा वक्त कीमती है इस छोर से उस छोर तक पदयात्रा नहीं कर सकता ,
चाहे इसके लिए मुझे सिर्फ़ चार्टर्ड प्लेनमें ही उड़ना पड़े .....
मुझे हमेशा आपकी हसती हुई तस्वीर ही लुभाती है
जो सिर्फ़ हरे हरे नोटों के कागज़ पर नज़र आती है ....
बत्ती जलाकर देखा तो आपकी तस्वीर ही गूम हो गई है
तभी आपकी आवाज हवामें गूंजती है ....
कहते है पाँच पैग पेट में डालते आदमी सच बोलने लगता है ,
इसी लिए आज सच सुनने के लिए मैं शराबखाने में बैठ गया हूँ ............
excellent
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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