6 अगस्त 2009

मर्यादा मेरी

शायद बेवजह किसी ख्यालमें गुम रहने की आदत है हमें ,

और अक्सर हमारे ख्यालोंमें आ जाने की आदत है उन्हें .......

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एक मेरे अदद वाचक है जो मेरे शुभचिन्तक भी है ...वे मुझे बड़े ही प्यार से एक सुधार लाना चाहते है मेरी लिखावटमें .....उनकी बातों से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ ...पर कहते है की हर व्यक्तिकी एक मर्यादा या कमी होती है ...बस ऐसा ही कुछ होता है जब मैं लिखने बैठती हूँ .....मुझे अल्फाज़ जैसे मेरे जहन पर लिखे नजर आते है ...मैं उन्हें फ़ौरन शब्दोंमें कलमके द्वारा बाँध लेती हूँ ....उसमे जितनी शक्य बन पड़ती है उतना सुधार भी कर लेती हूँ ..और उसे मेरे ब्लॉग पर रख देती हूँ ...

आपके आगे निसंकोच कहती हूँ की अगर उस वक्त उस ख्यालको अगर शब्द का जामा नहीं पहना पाती तो वो शब्द किसी गहरी गर्ता में गुम हो जाते है ...मैं अपने दिमाग पर एक शब्द लेकर कितना भी जोर लगा दूँ पर वो ख्याल दोबारा नहीं आता ...ज्यादातर मैंने रात को सोने जाती हूँ तब जाग्रत अवस्था से नींदके मंजर तक का जो सफर होता है उसमे कितनी ही बेहतरीन शायरी और कविता मेरे जहनमें उभरती है जिनको मैं आज तक कलमसे उतार नहीं पायी हूँ ...और मैं ये कहूँगी की अगर वो शब्द आज कविता या शायरी बन गए होते तो शायद उनका शुमार मेरी बेहतरीन रचनाओंमें होता ...आज तक उसका एक लब्ज़ मैं नहीं पकड़ पायी ...और हैरत की बात है की मैं उर्दू बहुत नहीं जानती फ़िर भी वो गुमनाम रचनाओंमें बहुत ही नजाकतसे उर्दू शब्द पिरोये हुए होते थे .....इस लिए कभी कभी मेरी रचनाएँ आपको बिखरी सी भी लग सकती है पर ये मेरी मजबूरी है क्योंकि फ़िर ये ख्याल मेरे जहनमें दोबारा नहीं आ पाते है ....उस निशब्द खयालोंकी घुटन मैं अपने में महसूस कर लेती हूँ ....

लेकिन फ़िर भी आप सबकी कमेंट्स मुझे मायूसीसे बचा लेती है और बेहतर लिखने को प्रेरित करती है .... मैं आप सबकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ अपनी हौसला अफजाई के लिए ......

हर किसीकी किस्मतमें गुलाब बनकर खिलना लिखा नहीं होगा ,

पर हम हिफाजत करने उसकी कांटे बनकर उसके साथ ही रहे ....

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अल्फाज़ जब जबान पर रुक जाते है ,लगता है निगाहोंसे समज लेंगे वो मेरी बात ,

जब निगाहें भी न मिल पाए उनसे तो कैसे समजा पाएंगे हम दिल की बात ????

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