हथेली पर एक टुटा पंख सहलाकर देखा
एक पुरे सफरकी कहानी सुनाई दी हमें ........
अंडेकी कैदसे आजाद होकर
घोंसलेमें करते थे दानों का इंतज़ार
माँ उड़ना सीखा गई
जमें हुए परोंको फडफडाकर खोल गई
फ़िर तो धरतीसे गगन का सफर
यूँ शुरू हुआ जैसे पवन .....
कभी डाली डाली कभी पात पात
कभी दाना दाना ,कभी कोरी ही घास घास
धरती के प्रेम संदेस आकाश को पहुँचाना ....
सुबहमें पर फैलाकर उड़ना ,दाना चुगकर शामको लौट आना
धरती पर झूमना और गगनमें गाना ...
ye safar bhi bada suhana raha.nanhe jeev se leke gagan mein udaan lene tak ka.bahut khub.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम