2 जुलाई 2009

वाह ताज !!!!!

दुनियाके नए सात अजूबों में जिसका शुमार हो चुका है उस ताज को अगर आप देखना चाहते हो तो आपको आगरा जाना ही पड़ेगा। संयोगसे मैं आगरा दो बार जा चुकी हूँ . एक बार १९८२ में और दूसरी बार गई २००५ में . लेकिन दोनों बार वह एक पैकेज टूर ही था .तो सिर्फ़ इस बार जट-पट घूमना भी देख लेते है .२००५ में दिल्ही में गुजराती समाज से ही सुबह जल्दी जाने वाली आगरा-मथुरा -वृन्दावन की टूर पर हम निकल पड़े .२०० किलोमीटर का सफर तय करने के बाद तकरीबन साढे बारह बजे के बाद आया आगरा . जहाँ पर सीधे ही लाल किले पर हम लोग पहुँच गए .
इस लाल किले की बनावट दिल्ही के लालकिले से ज्यादा बेहतर लगी । शाहें शाह अकबर ने इसे बनवाना शुरू कर दिया था .शाही गेट के सामने नोबत खाना और सलामी के लिए खड़े होने की जगह है .नीचे से ऊपर जाने के लिए एक सीधी चढाई का रास्ता है . वह इस लिए बनाया गया है की अगर दुश्मन ऊपर तक आए उससे पहले ही रोलर चलाकर उन्हें खत्म किया जा सके .आगे चलकर बादशाहों के शाही स्नान की जगह भी आती है .दीवाने आम ,दीवाने खास , मोती महल , बेगम के रहने के लिए सुंदर जनान खाना , बेटी जहाँआरा और रोशनआरा के लिए दो अलग कमरे ,मीना महल ,बस बेहतरीन वास्तुके इन नमूनों को देखते ही जाओ . बादशाह के ख़ुद के कमरों के तो क्या कहने ?!! शाही बेगम और बादशाह के नमाज पढने के लिए अलग से बनी मस्जिद ,शीश महल ,बैठने की बेंच भी जो संगेमरमर से तराशकर बनाई गई है . बादशाह के दीवाने आम में बैठने का सिंहासन जहाँ पर कभी मयुरासन ही हुआ करता था वह ऐसी जगह पर रखा है की वहां से दो दरवाजे जो प्रवेश करने के लिए है उनमेंसे किसीसे भी प्रवेश करने वाले व्यक्ति पर बादशाह की निगाह पड़ जाए .खम्भे और कमाने कुछ इस तरह बनाई गई है की किसी भी जगह से एक जैसे है नजर आती है . बेटे औरंगजेब ने शहंशाह शाहजहाँ को कैद करके आखरी वक्त तक इधर ही रखा था . वहां पर एक खास झरोखा भी बनवाया था जहाँ से शाहजहाँ ताजमहल को अपनी मरहूम बेगम मुमताज की याद को जो सामने वाले किनारे पर बनी हुई है उसे देख सके . कहते है शुरू शुरू में वहां पर हीरे और कांच को इस तरह से जड़ा हुआ था की जिस तरफ़ से देखे सिर्फ़ ताज ही नजर आए ....
लालकिले के उस जरोखे से हमने पहली बार ताज के दर्शन किए ।अब चलते है दुनिया के अजूबों में जिसका शुमार हो चुका है उस मोहब्बत के बेमिसाल कहानी ताज को देखने के लिए .......
एक बार याद रखे दिल्ही और आगरा के लालकिले और ताज दोनों शुक्रवार को बंद होते है ।बसों को काफी दूर लगभग ३ किलोमीटर दूर खड़ा किया जाता है .वहां से आपको बेटेरी से चलनेवाली बसों में ताज के मुख्य दरवाजे तक ले जाते है इससे प्रदुषण पास के इलाके मैं थोड़ा कम हुआ है . वहां से टिकर लेकर अन्दर जाते है तो हर एक व्यक्ति की पुरी तरह सामान के साथ जांच पड़ताल की जाती है . सुरक्षा का इंतजाम है .एक और लंबे रस्ते पर चलकर अब हम आ चुके है लाल पत्थर से बने एक विशाल दरवाजे के सम्मुख ...और सामने है ताजमहल ....!!!
क्या देशी क्या विदेशी ? ताज उन सब के लिए एक अप्रतिम आकर्षण बना हुआ है जिनके सीनेमें एक प्यार भरा दिल धड़कता है ।न भी धड़कता हो पर वह इंसान ये देखने जरूर आता है की ऐसी तो कैसी दीवानगी थी जिसके चर्चे सारे जहाँ में हो रहे है ....थोडी सी सीढियाँ चढ़कर बस रुकिए सामने ताज नजर आता है .वह ताज जो हमारे देश की पहचान का प्रतीक है .व्यावसायिक फोटो ग्राफर आपको घेर लेते है अलग अलग पोज़ में खींची हुई तस्वीर के एल्बम दिखाते है .निजी केमेरा वाले लोग अब जूट जाते है ताज को तस्वीर में कैद करके याद को अपने साथ ले जाने के लिए .आप फिल्मों में ,तस्वीरों में तो ताज की सैर करही चुके हो पर आज उसके बगीचे की मुलायम घास पर चलते हुए फव्वारों को देखते हुए ताज के निकट ....
एक छोटे से दरवाजे के बाहर जूते उतारकर ताज में प्रवेश कीजिये ।कुछ अल्फाज ताज की शान में :
ताज !!
एक दास्तान है तू ...!!
संगेमरमर पर तराशी हुई ...
मोहब्बत -इश्क -प्यार जिस नाम से पहचाने वह कहानी है तू ...!!
शाहजहाँ और मुमताज की ये दास्ताने मोहब्बत है ,
श्वेत संगेमरमर की पाक रूह की तरह ...
नक्काशी उसकी कोई शायर की रुबाई है ...!!!
नजाकत है ऐसी ...
सूरज से तप जाता है और ठंड उसे और सर्द बनाती है ....!!
सदियाँ बीत गई बस तू तो यूँही खड़ा रहा ...
दो प्यार भरे दिलों की दास्ताँ अपनेमें समेटे हुए ....
अय मुमताज तेरी तारीफ मैं जो कसीदे पढे होंगे शाहजहाँ ने ,
फूलों की बेलें बनकर आज भी ताझा है ....!!!
अय चाँद तेरी चाँदनी जब पूरे शबाब पर होती है ....
जैसे तुममें ही घुल कर रह जाती है ताज...!!!
तब कुछ यूं लगता है ...
ताज सिर्फ़ मुमताज-शाहजहाँ की नहीं है कहानी .....
प्यार मैं धड़कते हर दिल की दास्ताँ है यह ...!!!
पयमाना है जो हरदम यूँही छलकता रहेगा ...
इंसान की हस्ती रहेगी इस जहाँ में जब तक ....!!!
ताज सिर्फ़ देखने के लिए नहीं अहसास को महसूस करने की भी जगह है ।हो सके तो पूर्णिमा की रात को जाए .उस वक्त टिकट शायद ५०० रूपये होती है . ताज के विशाल आते में बैठ कर तकरीबन आधे घंटे तक जमुना नदी को निहारा .यहाँ पर सबसे ज्यादा विदेशी लोग पाए गए ...
ताज में जो ऊपर के मजले पर कब्र बनी हुई है वह नकली है ,असली कब्र तहखाने में है जो अब देखने के लिए बंद किया जा चुका है। मैं जब unmarried थी तब १९८२ में वहां पर गई थी तब मैंने उस असली कब्र को भी देखा था . आज २००५ में जब अपने पतिदेव के साथ गई तब ताज को समज पाई ...
इसके अलावा यहाँ पर राधास्वामी का मन्दिर है जो बरसों से बन ही रहा है ॥पर हम वहां पर नहीं गए थे ।पैकेज टूर होने के कारण बाज़ार देखने का मौका नहीं मिला .डेढ़ घंटे ताज महल पर रुकने के बाद हम वापस चल दिए ...
हाँ आप इधर से ताज की प्रतिकृति जैसे छोटे ताज को जरूर ले जाए .और पेठे भी खाए जो मोहब्बत की मिठाश लिए होते है .....
-मेरे ताज !!! तुम ही रहोगे सरताज !!!

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