जिनकी तमन्ना को कुछ जवां होने दो ,
तक़दीरकी लकीर को हम पर मेहरबां होने दो ,
कलमें जगी थी उम्मीद थोडी रोशन सी थी ,
बस उसे अब प्यार की दास्ताँ होने दो .....
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जुस्तजू किए थे हम कि खाक हो जाए हम भी परवानो की तरह ,
खाक हो जाने की उस शमा की तक़दीर न थी बुझ गई वो मझधारमें ,
जमें हुए उस शमाके अश्क पर कुछ देर तो हम भी रुक लिए ,
तक़दीरसे लड़ लिए की क्यों हमारी किस्मतमें फ़ना होना न था .........
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bahut badia abhivyakti hai aabhaar
जवाब देंहटाएंBhavuk rachna..
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