छूकर गुजर रही है ये सर्द हवाएं अब हमारी गलीसे यूँ ,
जैसे सहरामें फ़िर भीगी बारिशके बादल छाये हो ...........
फ़िर मनने गीले से सिले से सपनेको संजो लिया ,
फ़िर किसीके आने की आहटमें तुम्हारे आने का इंतज़ार पाया ........
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कब मिलो ? कैसे मिलो ? बस ये तय करने में हर शाम जाया कर देते हो ,
मिलते हो शिकवे और गीले करके बस वक्त को रेत के टीलेकी तरह तोड़ देते हो ,
शायद ये ही तो वजह है की अब हमारी रात सपनेमें तुम्हे मनानेमें गुजर जाती है ,
सुबह एक बार फ़िर वो इंतज़ार की घडियां नए सिलसिले लिए शुरू हो जाती है .....
वाकई आपकी कविता में जिंदगी की रिदम है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शायद ये ही तो वजह है की अब हमारी रात सपनेमें तुम्हे मनानेमें गुजर जाती है ,
जवाब देंहटाएंसुबह एक बार फ़िर वो इंतज़ार की घडियां नए सिलसिले लिए शुरू हो जाती है ....
Bahut achchhi aur prabhavshali pantiyan.Bahut pasand aayi.