28 मई 2009

इंतज़ार ...

छूकर गुजर रही है ये सर्द हवाएं अब हमारी गलीसे यूँ ,

जैसे सहरामें फ़िर भीगी बारिशके बादल छाये हो ...........

फ़िर मनने गीले से सिले से सपनेको संजो लिया ,

फ़िर किसीके आने की आहटमें तुम्हारे आने का इंतज़ार पाया ........

=============================================

कब मिलो ? कैसे मिलो ? बस ये तय करने में हर शाम जाया कर देते हो ,

मिलते हो शिकवे और गीले करके बस वक्त को रेत के टीलेकी तरह तोड़ देते हो ,

शायद ये ही तो वजह है की अब हमारी रात सपनेमें तुम्हे मनानेमें गुजर जाती है ,

सुबह एक बार फ़िर वो इंतज़ार की घडियां नए सिलसिले लिए शुरू हो जाती है .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई आपकी कविता में जिंदगी की रिदम है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    जवाब देंहटाएं
  2. शायद ये ही तो वजह है की अब हमारी रात सपनेमें तुम्हे मनानेमें गुजर जाती है ,

    सुबह एक बार फ़िर वो इंतज़ार की घडियां नए सिलसिले लिए शुरू हो जाती है ....
    Bahut achchhi aur prabhavshali pantiyan.Bahut pasand aayi.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...