24 मई 2009

एक दिन अचानक ........

देव खुराना !!

ये महज एक नाम नहीं है ...

इस नाम के साथ जुड़ी हुई है एक बहुत बड़ी शोहरत ।ये शोहरत मिली है उसके विशालतम औद्योगिक साम्राज्य के कारण!! वह कभी सफलता के पीछे नहीं भागा,बल्कि सफलता ख़ुद उसे ढूँढती हुई चली आती है .

देव खुराना समाजके निम्न तपके से था ।एक गरीब परिवार में उसका जन्म हुआ था .शिष्य वृत्ति पाकर उसने स्नातक की पदवी हासिल की थी .कोलेज के प्रिंसिपल की मेहरबानी से लाइब्रेरी के कोने में वह सो जाता था . पास में थे सिर्फ़ तीन जोड़ी कपडे . पर पढ़ाई में अव्वल . स्नातक होने के बाद एक राष्ट्रीयकृत बैंक में क्लर्क बन गया ...एक दिन किस्मत का चरखा कुछ ऐसा घुमा कि देव एक बैंक के क्लर्कमें से आज पूरे देश के प्रथम पंक्ति के सफलतम औधोगिक संस्थान का मालिक था. जुहू में अपना विशाल बंगला था .पत्नी कुसुम भी कंपनी में सक्रीय थी .माँ बाप गाँव में अब बहुत ही सुखी थे . दो बहनों का ब्याह अच्छे घरों में हो गया था .उसकी ख़ुद की दो संताने थी .बड़ा बेटा सौरभ और छोटी बेटी पुनीता. दिन पानी की तरह बहे जा रहे थे . दोनों पति-पत्नी दिन भर अपने व्यापार के विकास में व्यस्त होने के कारण बचपनसे दोनों बच्चे बोर्डिंग स्कूल में भरती थे .बेटा पंचगिनीमें और बेटी मसूरी में ....

एक दिन उनकी ऑफिसके अरुण शर्मा को देव ने अपने केबिन मैं बुलाया ।

"शर्माजी ।आपको कल दिल्ही जाना पड़ेगा .मंत्रालय से ये नया निर्यात का परवाना लेने के सन्दर्भ में सारे काम निपटा कर ही वापस आना है ." देव ने हुक्म दिया .कभी न सुनने की उसकी आदत न थी .

" सर ,मुझे माफ़ कर दीजियेगा । मेरी जगह आप मिश्राजी को भेज दीजिये .मैं कल तो नहीं जा पाउँगा ." शर्माजी ने पहली बार इंकार कर दिया .

"शर्माजी, किसे भेजना है और किसे नहीं ये मुझे तय करना है ।आपको नहीं .और आपको ही इस काम के लिए जाना पड़ेगा ." देव की आवाज में सख्ती थी .

"सर , अगर आप मुझे ही भेजना चाहते है तो मैं कल नहीं परसों ही जा सकता हूँ । कल किसी भी तरह नहीं ." शर्माजी ने पलटकर जवाब दिया .

"पर क्यों ?" अब देव के स्वर में गुस्सा साफ नजर आया ।

"सर ,कल मेरे बेटे का जन्मदिन है ।मैंने उसे वादा किया है कि मैं पुरा दिन उसके साथ ही गुजारुंगा. सर ,मेरी जगह कोई और दिल्ही जा सकता है पर मेरे बेटे की इच्छा तो बाप होने के नाते सिर्फ़ मुझे ही पुरी करनी है ."ये कहते हुए शर्माजी कोई भी प्रतिक्रिया देखे बगैर केबिन छोड़कर चले गए .

आज पहली बार देव खुराना बुत बनकर कुर्सी पर लंबे समय तक बैठ कर कुछ सोचता रहा । उसने चुप्पी साध ली .देव सोचने लगा की आज उसका बेटा कितने साल का हो गया है ?आखरी बार उसे शायद ६ महीने पहले दीवाली पर ही देखा था .फोन पर उसकी आवाज सुने २ महीने हो चुके थे .उसकी संतान के बोर्डिंग के कमरा नंबर भी उसे मालूम न थे . उनकी सार जिम्मेदारी कुसुम ही निभाती थी . और बहुत अच्छी तरह निभाती थी .पुनीता जब चार साल की हुई थी तब शायद उन्होंने उसका बर्थ डे मनाया था . घर पर माँ बाबूजी से भी दो महीने से वह बात नहीं कर पाया था .

आज शर्माजी की बात सुनकर वह बेचैन हो चुका था ।खेर उसने मिश्राजी को ही दिल्ही भेज दिया .आज शाम लौटते वक्त अपनी बी.एम्.डबल्यु.में उसे गर्मी लग रही थी .नजर बाहर थी पर दिमाग कहीं और ....

रात आठ बजे ही खाना खाकर वह जल्दी ही अपनी स्टडी में चला गया ।कुसुम को ये कुछ अजीब लगा .दरवाजा अन्दर से बंद करके उसने पहले मसूरी फोन लगाया . हॉस्टलकी अधिकारी ने बताया सारे बच्चे सो चुके है आप सुबह फोन करें .

अब पंचगिनी फोन जोडा।थोडी देर में ही सौरभ सामने के छोर पर आया .

"हेल्लो ।कौन है ?" सौरभ ने पूछा .

"बेटे ,मैं तुम्हारा पापा ..."देव ने जब ये कहा तो सौरभ खुशी से उछल पड़ा ।

"पापा ,सचमुच आप बोल रहे है ?" अभी भी सौरभ को यकीं नहीं हो रहा था ।

फिर तो बातों की लम्बी बौछार हुई । दोनों उसमे भीगते रहे .

जब फोन रखा तो शायद देव के दिल में वह खुशी थी जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी ...

उसे एक बार शर्माजी फ़िर याद आ गए ।

दूसरी सुबह देव जल्दी उठकर नहा धोकर कहीं चल दिया ।टेबल पर चिठ्ठी छोड़ दी की वह किसी काम से टैक्सी से पूना जा रहा है .कुसुम के लिए ये कोई नई बात नहीं थी .

आज वह एक मामूली दुकान पर गया ।सीधे सादे कपड़े और चप्पल ख़रीदे .बदल कर जब आयने में देखा तो ख़ुद अपने आप को पहचान नहीं पाया .मरीन ड्राइव पर आधे घंटे चना जोर गरम खाता बैठा रहा .

बड़े आदमी का चोला उतार कर वह अपने आपको बहुत ही हल्का फुल्का महसूस कर रहा था ।ट्रैफिक सिग्नल पर उसके दोस्त मंजीत ने भी उसे नहीं पहचाना तो वह बहुत खुश हो गया . एक इरानी रेस्तोरां में बैठ कर उसने चाय के साथ वडा पाऊं खाया .बड़े ही लिज्जत से यार !!!

उसे अपोइंटमेंट ।सेल फोन ,सेल्यूट , ऐ सी केबिन के बगैर की इस खुली हवा में साँस लेना अच्छा लगा .

तीन बजे वह पास के सिनेमा होल में पिक्चर देखने गया ।स्टाल का टिकट लिया . उसका तो घर में ही अपना थियेटर था .कभी कभार मल्टी-प्लेक्स में पत्नी के साथ गया था .वहां की कान में फुसफुसाती हुई बातें ,मादक खुशबू से महकते लोग ,मेक अप से लिपटे चेहरे ,मंहगे बेव्रेजिस और नाश्ते सर्व करते काउंटर सब यहाँ नादारद था .अपने पास के सबसे नए कपड़े पहनकर एक आम इंसान के परिवार खुशी खुशी फ़िल्म देखने आए थे .इंटरवल में जब पापा समोसे और क्रीम रोल लेकर आए तब उनके चेहरे पर छलकती खुशी अपने बच्चों के चेहरे पर देखना शायद देव की किस्मत में नहीं था .

यहाँ की आवाज में जिन्दगी का नर्तन था ।जिन्दगी जैसे खुशियों के जाम छलकाती थी .अच्छे गानों पर लोग सिटी बजाते थे . देव के पास ये खुशी खरीदने का कोई डेबिट या क्रेडिट कार्ड नहीं था . हाँ कई और बैंक के क्रेडिट कार्ड जरुर थे .

शाम को एक अच्छा सा तोहफा लेकर देव शर्माजी के घर गया ।उनकी खुशी में शामिल हुआ . उसने ये बात कुसुम को न बताने की हिदायत उन्हें दी .

रात की विमान की उड़ान से वह दिल्ही होते हुए मसूरी पहुँच गया । कंप्यूटर पर इंटरनेट के जरिये उसने पुनीता का तबादला मुम्बई की स्कूल में करवाया .पुनीता अपने पापा से प्यार से लिपट गई .

सब समान बांधकर दोनों वहां से पंचगिनी पहुंचे ।सौरभ को साथ लिया . चौथे दिन की सुबह में जब कुसुम ने घर का द्वार खोला तब वह देखती ही रह गई की ये कोई सपना तो नहीं था ?!!!

वह ये सपना था जो कुसुम ने हमेशा देखा था पर वह जुबान पर कभी ला नहीं पाई थी और आज उसके पति ने सच कर दिया था ।

अब तो देव और कुसुम माँ बाबूजी को भी मुम्बई लेकर आ गए है ।

सुबह दोनों बच्चों को देव स्कूल छोड़ कर ऑफिस जाता है और शाम को ख़ुद ही लेकर लौट जाता है ।

रात को डाईनिंग टेबल पर सभी एक साथ बैठ कर खाना खाते है .जिंदगी तब चहकती है ,महकती है ,रूठती भी है और मनाती भी है ...पर हर खुशियों का वह आशियाना बन जाती है ....

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