ट्राईसिकल पर सवार होकर ,निखर गया बाइसिकलका प्यार ॥
बाइसिकलकी नजर मिली एक मोटरसे ,
तो मोटर साइकल बन उडी हवा पर होकर सवार .........
गोवाके ट्राफिकसिग्नल पर नजर लड़ गयी
उसकी एक पुरानी शेवरोलेट गाडी से ,
एक नदीमें दोनों चल दिए वो बोटमें होकर सवार ..........
उड़ते एरोप्लेन के पहिये पर बांध झुला मैं हवा खा रही थी कुछ देर के लिए ,
ब्रेक लगे पायलटने तो मैं गयी समुन्दर के अन्दर ,
सब मरीन के अन्दर से मछली से बात कर रही हूँ अभी .......
बाहर आकर बताती हूँ सफ़रका अफसाना ,
ये तुक्का आया तब जब हुआ साइकलमें हुआ था मेरी पंक्चर ........
उड़न तश्तरी नहीं दिखी??
जवाब देंहटाएंबढ़िया है... और अचछी रचना की उम्मीद लगे बैठा हूँ.
जवाब देंहटाएंalag hi andaz e bayan bahut khub
जवाब देंहटाएंaise bhee kaise bhee, hasne hasaane kaa ye andaaj pasand aayaa, kya gajab kee kalpana hai, likhtee rahein.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत अच्छे!
जवाब देंहटाएंkya kahun.......kaise taarif karun.........?
जवाब देंहटाएंkya poochu kaise likh lete ho sab kuch ......pata nahi .......