आ चलो आज हरे भरे खेतमें
वहां जो घना सा नीमका पेड़ है
उसकी नर्म ठंडी छाँवमें बिछी खटियामें
बैठकर जरा खट्टे मीठे बेर और इमली खाते है ....
इसकी डाली पर बंधे झूले पर
अपने बचपनको जरा जरा झुलाते है
देखो दुपट्टेकी गांठमें बांधकर एक डिबिया छुपायी है
जरा मोती,वो पुराने गिट्टे और माँकी माला लायी हूँ .......
आज जरा सा बहक लेते है ,
चलो थोडा चिडियाके साथ चहक लेते है
फिर छोटी सी बात पर यूँही जरा रूठ लेते है
फिर आंखमिचोली खेलकर तुम्हे मना भी लेते है .......
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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bachpan hi ji liya aaj to man bahak bahak gaya jhula par,sunder rachana
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना ... बधाई।
जवाब देंहटाएंबचपन की क्या खूब कहानी
जवाब देंहटाएंकह गईं तुम कविता की वाणी
अच्छा है