छोटी है कश्ती नन्हा है नाविक ,
सागरकी लहरों पर चल पड़ा है ,
अकेला वो मुसाफिर .....
सागरके तरंगों पर उछल रही है लहरें ,
कह रही है जैसे दिल की हर बात तू कह ले ,
मैं ही हूँ वो खारे पानी का सागर ,
जिसने सहेजके रखा है अश्कों को दुनियाके .....
ग़मों के दरियाओं को समेटकर ख़ुद में ,
फ़िर भी हरदम खेलता रहता हूँ उछलते हुए ,
नहीं बुज़ती है कभी मेरे इन पानीसे कभी ,
मेरे भीतर की वो आग जो जन्मोंसे है लगी .......
चलता दौड़ता आया हूँ मैं किनारों पर ,
तो रेत जैसे कानोंमें कह जाती हैं ,
अय मीत लौट जा इधर से ही मुड़कर ,
क्योंकि बाहर तो दुनिया फानी है .....
लहरों को उछालके अपनी ,
कोशिशमें लगा रहता हूँ ,
अय आसमान तुज़े छुनेकी ,
लोग कहते हैं देखो वहां अम्बर धरती से मिले है ,
सिसकता है ये दिल ,
की मिलते तो दिखते हैं पर कभी मिलते नहीं ......
आज मैं बहुत खुश हूँ ,
भले ही तू है छोटी सी पर ,
पहलू पर मेरे चलकर तू ख़ुद ,
मुजसे मिलने आई है ...
अय नन्हे से नाविककी प्यारी सी कश्ती ...
bahut hi umda lekhan hai ....bahut kuchh kah rahi hai aapki ye rachna
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
प्रीति जी कविता के भाव बहुत अच्छे हैं मगर रचना में बिखराव आ गया है.. एक सहज वहाव नहीं है.. पढने पर टुकडों में प्रतीत होती है.. कुछ व्याकरणिक त्रुटियां भी हैं.. यह मेरी व्यक्तिगत राय है.. आशा है आप इसे सकारात्मक रूप में लेंगी
जवाब देंहटाएंआज मैं बहुत खुश हूँ ,
जवाब देंहटाएंभले ही तू है छोटी सी पर ,
पहलू पर मेरे चलकर तू ख़ुद ,
मुजसे मिलने आई है ...
अय नन्हे से नाविककी प्यारी सी कश्ती ...
bahut sunder bhav