18 मार्च 2009

रेखाओंकी जाल दोनों पर बुनी थी ......

एक हथेली पर पत्ता रखा और दूसरी हथेलीको भी देखा ,
रेखाओंकी जाल दोनों पर थी बुनी हुई .....................
हथेलीमें उसे हमने तक़दीर का नाम दे रखा है ,
पत्तेमें जीवनकी संजीवनी बनकर सज रही थी .........
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समुन्दरकी बालू पर हमारे क़दमोंके है ये निशान ...
थोड़े से गिले थोड़े से सिले बालूसे हमारे पाँव थे ......
हाथमें हाथ डालकर दूर तक यूँही आप संग चलने की ख्वाहिश लिए ,
वो नाचती कूदती लहरें बार बार हमें भिगोये जा रही थी साहिल पर ......
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एक पंछीके पर तोलना और उसका उड़ जाना ऊँचे ,
एक तक देखती रहती थी ये निगाहें उसे ,
मन ये बावला उसके पर सवार होकर उड़ता है .....
आसमांको साँसोंमें भरने और सूरज को पीने के लिए ...
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