क्या करे इन आंखोको ख्वाबोंकी आदत सी हो गई है ,
ना ना कहते हुए भी हमें किसीकी चाहत हो गई है ...
हमारा ये दिल किसी और की अमानत हो गई है ,
ये क़यामत नहीं तो और क्या है की हमें भी किसीसे मोहब्बत हो गई है ....
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रोशन से चेहरे पर ये कैसा हिजाब आया है ?
जिसे देखने भरसे मुझे ये ख़याल आया है ....
पूनम के चाँद पर जैसे झुल्फों का बादल छाया है ....
शर्माकर कभी यूँही वो चाँद भी चिलमनके पीछे से झांक गया है ....
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सुन्दर कविताएँ..
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