22 फ़रवरी 2009

"बनारस "

नहीं ये कोई जगह का वर्णन नहीं है ..आज मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँ एक फ़िल्म को जिसका नाम बनारस है ...ये फ़िल्म कल रात दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी ...
गंगा नदी के तट पर एक विशाल और भव्य हवेली की सुन्दरता जो देखने से ही हमें अभिभूत कर देती है ..उसमें एक बालकनी थी जिसमेसे कई बार उगते सूरज के दृश्य को फिल्माया गया था .उर्मिला मातोंडकरकी उत्कृष्ट भूमिका देखने मिली जिसे देखकर ये लगा की इस किरदार को उससे बेहतर और कोई निभा नहीं सकता था .राज बब्बर और डिम्पल कपाडिया साथी किरदार थे ....
बात मुझे इस फ़िल्म की नहीं करनी है पर उसका एक संवाद जो इतना गहन है उस पर मैं कुछ अपना विचार कहना चाहूंगी :

"जो सरल है वह सत्य है ..."

ये बात जितनी दिखती है उतनी सरल नहीं है । एक आम इंसान के लिए इसका सार समज पाना शायद अत्यन्त कठिन है ...क्योंकि इसे समजने के लिए एक इंसान को ख़ुद को एक ऊंचाई तक पहुंचना पड़ता है .उस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए उसे अपना गर्व ,अहंकार ,व्यक्तित्व का ,ज्ञान का गुरुर इन सबको छोड़कर इस लिबास से बाहर आना पड़ता है .ये सत्य उस छाया की तरह है जो बहुजन समाज के लिए केवल भ्रम या एक पागल सा ख्याल हो सकता है ,पर जिन्हें इस चीज का साक्षात्कार हो जाता है वह इंसान हर पीडा ,हर दर्द ,हर गम ,हर खुशीसे मुक्त होकर एक अनंत आनंद की अनुभूति को अपने में पा लेता है .वह इंसान इतना ऊपर उठ जाता है की उसे पीडा देनेवाला हर इंसान पश्चातापकी आग में जलता है ,इस बात का वह इकरार करता है और वह इंसान उन सबको इतनी सरलतासे माफ़ कर देता है जो शायद आम इंसान के लिए कभी मुमकिन नहीं हो सकता ...ये इंसान दुसरे के हर पीडा दर्द को बिना कुछ कहे ही महसूस कर लेता है .......
नसीरुद्दीन शाह एक ऐसी ही सच्ची आत्मा है जो हर वक्त उर्मिला और उसके मित्र को नजर आती है ..बाकी के सभी इस बात का इनकार करते है यहाँ तक की एक मनोवैज्ञानिक होता है जो ब्लड कैंसर के अन्तिम दौर में होता है वह उसे मानने से इनकार करता है ,पर ये पराशक्ति की बात वह उर्मिला से सुनता है और उस सच्चाई पर यकीं हो जाता है । वह साधुओंकी एक समूह के पीछे जाता है उसे जिस वक्त नसीरुद्दीन शाह की आत्मा का दर्शन होता है उसकी हर पीडा गायब हो जाती है ........

ये बातसे कई लोग तार्किक रूप से सहमत नहीं होंगे ...वे दलील भी करेंगे पर जैसे मैंने पहले है कहा ये हर आम इंसान के समज से परे है ...दर्शनशास्त्र के अभ्यासू भारतीय ग्रन्थ का अभ्यास होने पर भी नहीं पर ख़ुद के अनुभव से ही ये बात का स्वीकार सम्भव हो सकता है .....ख़ुद से ऊपर उठकर ही ...

क्योंकि :
"जो सरल है वह सत्य है ...."

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